पटना: गब्बर इज बैक, बॉलीवुड का एक फ़िल्म जिसमें दिखाया गया है कि किस प्रकार से प्राइवेट अस्पताल में एक मरीज की मौत हो चुकी है और उसे जिंदा बता कर कई दिनों तक इलाज के नाम पर परिजनों को लाखों का बिल थमा दिया जाता है। कहानी फिल्म की है लेकिन बिहार के दरभंगा में इसे असल जीवन में एक नामी अस्पताल पारस ग्लोबल द्वारा उतारा गया है। एक मरीज जिसकी मौत हो जाती है और उसके बाद भी पारस ग्लोबल अस्पताल में जिंदा बताकर इलाज किया जाता है और सिर्फ उसके नाम पर भारी भरकम पैसों की मांग की जाती है। दरभंगा का पारस ग्लोबल अस्पताल उदाहरण के तौर पर हमारे सामने आया है लेकिन ऐसे ना जाने कितने अस्पतालों में हर रोज इंसानियत को शर्मसार कर केवल पैसों के लिए मानवता को बेचा जाता है। अगर हमारे पास मानवता है ही नहीं तो हम फिर मानव किस बात के?
एक सवाल उन तमाम डॉक्टरों से रहेगा जिन्हें हम भगवान मानते हैं। वे हर छोटी बड़ी बात पर सड़क पर उतर कर प्रदर्शन के लिए तैयार रहते हैं लेकिन जब ऐसी कोई घटना सामने आती है तब कितने डॉक्टर उसके खिलाफ सड़क पर उतरकर प्रदर्शन करते हैं और मांग करते हैं कि इस अस्पताल के ऊपर कड़ी से कड़ी कार्रवाई हो? देश के अंदर डॉक्टरों के लिए बड़े-बड़े संगठन हैं लेकिन अफसोस की जब उनके बीच का कोई इतनी गिरी हरकत करता है तब उन संगठनों के कर्ताधर्ता अपने मुंह से एक शब्द नहीं निकालते।
सरकार की तरफ से कोरोना को लेकर तमाम तरह के गाइडलाइन निजी अस्पतालों के लिए जारी किए गए हैं लेकिन हमेशा से यह खबर देखते और सुनते आ रहे हैं कि निजी अस्पताल सरकार की बातों को सुनने के लिए तैयार नहीं है और वे मनमाने ढंग से मजबूर मरीजों के परिजनों से धन वसूली कर रहे हैं। कुछ अस्पताल तो इतने नीचे गिर गए हैं की वे मृत व्यक्ति के लिए भी पैसों की मांग कर रहे हैं और उनका इलाज कर रहे हैं। दरभंगा का पारस ग्लोबल अस्पताल जहां से शिकायत मिली की अस्पताल प्रशासन द्वारा मनमाने ढंग से पैसा वसूला जा रहा है। मरीज के परिजनों ने जब शिकायत किया तो 6 सदस्य वाली टीम का गठन किया गया जिसने इस मामलें में जांच प्रारंभ की। इनके तरफ से जब जांच शुरू की गई तो इनके होश उड़ गए जब इन्हें इस बात का पता लगा कि मरीज की मौत होने के बाद भी पारस ग्लोबल अस्पताल द्वारा जिंदा बताकर दवाई के नाम पर पैसा लिया जाता रहा।
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6 सदस्य वाली टीम ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि अस्पताल द्वारा जिस मरीज का इलाज किया जा रहा था वह कोविड-19 के निर्देशों का उल्लंघन था। सरकार ने जो दिशा-निर्देश दिया है, उसके अनुसार इलाज नहीं किया गया। जांच करने वाली टीम ने बताया कि मरीज को कई आवश्यक दवाएं दी गई जिसका कोई उपयोग था ही नहीं। इसके बाद जांच करने वाली टीम ने रिपोर्ट में जिस चीज का खुलासा किया उसे सुनकर हर कोई हैरान था। रिपोर्ट में बताया गया कि मरीज की मृत्यु के बाद भी 30 मई को अस्पताल प्रशासन द्वारा दवा के नाम पर पैसा लिया गया है।
इससे भी ज्यादा हैरान करने वाली बात है कि अस्पताल में भर्ती करने के दौरान मरीज का किसी प्रकार का कोविड जांच नहीं किया गया। अस्पताल की तरफ से ना ही एंटीजन और ना ही आरटीपीसीआर जांच कराया गया। बिना जांच कराये ही मरीज को एंटीफंगल से लेकर एंटीबायोटिक तक कई दवाइयां लगातार दी गई। इसके अलावा अस्पताल ने रेमडेसिविर इंजेक्शन भी दिया। जांच के दौरान एक और बात सामने आई की मरीज को वेंटीलेटर पर रखने के लिए 9 दिनों का चार्ज जोड़ा गया जबकि असल में मरीज को मात्र 3 दिन के लिए वेंटिलेटर पर रखा गया था। अस्पताल प्रशासन के द्वारा दूत रहता भी तैयार किया गया था प्रोविजनल बिल और फाइनल बिल के तौर पर हम जानते हैं। प्रोविज़नल बिल 2 लाख 97 हजार 100 रुपया का बनाया गया है तथा फाइनल बिल 2 लाख 30 हजार 500 रुपये का बनाया गया है। अब जांच करने वाली कमेटी के तरफ से पारस ग्लोबल अस्पताल के खिलाफ 1 लाख 12 हजार की वसूली तथा अन्य कई आरोपों के साथ जिलाधिकारी से अनुशंसा किया गया है कि वह आगे की कार्रवाई करें।