पटना: सरकार की तरफ से पंचायतों को लेकर एक नई व्यवस्था बनाई गई है लेकिन इस नई व्यवस्था को लेकर भाकपा माले उत्साहित नहीं है बल्कि निराश है। माले का कहना है कि राज्य सरकार का यह फैसला बिल्कुल अलोकतांत्रिक है तो वहीं सरकार ने कल पंचायत प्रतिनिधियों को लेकर जो फैसला लिया उसे सरकार सरकार के तरफ से बिल्कुल सही बताया जा रहा है।
माले ने तो एक कदम आगे बढ़ाते हुए 3 तारीख को इस फैसले के खिलाफ राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन का भी ऐलान कर दिया है। राज्य सरकार के इस फैसले के खिलाफ राष्ट्रीय जनता दल के नेता भी हैं तो वहीं कांग्रेस पार्टी भी सरकार के इस फैसले से सहमत नहीं है। आखिर सरकार ने जो फैसला लिया है उससे विपक्षी दलों को क्या परेशानी है और सरकार क्यों विपक्षी दलों की मांग को नहीं मान रही है, इन सब पर एक-एक कर चर्चा करेंगे। शरुआत करते है विपक्षी दलों की मांग से।
विपक्षी दलों की तरफ से लगातार मांग किया जा रहा है कि सरकार राज्य की पंचायतों में पंचायत प्रतिनिधियों के कार्यकाल को बढ़ा दे क्योंकि फिलहाल इस परिस्थिति में चुनाव कराना संभव तो है नहीं और अगर पंचायत प्रतिनिधियों का कार्यकाल नहीं बढ़ाया जाता है तो फिर त्रिस्तरीय पंचायती व्यवस्था पर संकट के बादल छा जाएंगे लेकिन सरकार ने कल फैसला लिया जिसमें सरकार की तरफ से बीच का रास्ता निकाल लिया गया। अब विपक्षी दलों का कहना है कि सरकार ने जो फैसला लिया है वो अलोकतांत्रिक है। विपक्ष के नेताओं की मांग है कि सरकार पंचायत स्तर के जनप्रतिनिधियों के कार्यकाल को बढ़ा दे बल्कि सरकार के तरफ से कहा गया कि संविधान में पंचायतों के कार्यकाल को 5 साल से अधिक बढ़ाए जाने की कोई व्यवस्था ही नहीं है। कल सरकार की तरफ से मंत्री सम्राट चौधरी ने भी इसी बात को कहा था लेकिन माले का कहना है कि अगर सरकार की मंशा होती तो सरकार अध्यादेश लेकर भी आ सकती थी। माले के नेताओं का कहना है कि अगर कार्यकाल बढ़ाने का कोई नियम नहीं है तो सरकार अध्यादेश लेकर क्यों नहीं आई जिसके जरिए ऐसा नियम बनाया जा सके। अब माले के तरफ से सरकार के इस फैसले के खिलाफ 3 तारीख को यानी कि कल विरोध प्रदर्शन किया जाएगा।
राष्ट्रीय जनता दल की तरफ से खुद प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने कहा है कि हमारी मांग थी कि पंचायत स्तर के जनप्रतिनिधियों को अंतरिम व्यवस्था कर चुनाव होने तक रहने दिया जाए लेकिन सरकार ने हमारी मांग को नहीं माना और जिस नई व्यवस्था को सरकार ने लागू किया है उससे स्वरूप भी स्पष्ट नहीं है। इसके अलावा कांग्रेस पार्टी का कहना है कि पंचायत स्तर की जनप्रतिनिधियों का कार्यकाल तो हर हाल में बढ़ाया ही जाना चाहिए। सरकार मौजूदा स्थिति की भयावहता को नहीं समझ रही है। कांग्रेस पार्टी का मानना है कि यह सब केवल कागजी खानापूर्ति है।
कांग्रेस पार्टी का मानना है कि इसकी प्रक्रिया इतनी जटिल और लंबी होगी की जमीन पर आपको कुछ ढंग से देखने को नहीं मिलेगा। अब आपको सरकार के फैसले के बारे में बताए तो सरकार ने फैसला लिया है कि पंचायत स्तर जनप्रतिनिधियों का कार्यकाल नहीं बढ़ाया जाएगा बल्कि उसके जगह पर परामर्श समिति का गठन किया जाएगा जो पंचायतों में सरकारी योजनाओं को लागू करेगी। इस परामर्श समिति में मौजूदा जनप्रतिनिधियों को मौका दिया जाएगा तो वहीं सरकार के भी अधिकारी इसमें शामिल रहेंगे। बताया जा रहा है कि परामर्श समिति के गठन के लिए नीतीश सरकार की तरफ से पंचायती राज अधिनियम 2006 में संशोधन भी किया गया है।
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जो जानकारी अब तक सामने आई है उसके मुताबिक अधिनियम की धारा 14, 39, 66 और 92 को संशोधित किया गया है। अब बिहार सरकार अपने निर्णय पर काम करते हुए बिहार के हर पंचायत में तथा बिहार के हर जिला परिषद में एक परामर्श समिति का गठन करेगी और यह परामर्श समिति जब तक चुनाव नहीं होता तब तक पंचायतों का पूरा काम काज देखेगी। बिहार सरकार के कैबिनेट द्वारा लिए गए इस फैसले को अब राज्यपाल के पास भेजा जाएगा जिसके बाद से परामर्श समिति का गठन होगा। फिलहाल सरकार की तरफ से एक बीच का रास्ता निकाला गया है तो वहीं विपक्षी दल इससे संतुष्ट नहीं है। हालांकि इस बात की पूरी उम्मीद है कि सरकार ने जो फैसला लिया है उसे लागू करेगी।