पटना: सरकार के दावे और जमीन पर चल रहे काम में कितना बड़ा अंतर होता है उसका एक उदाहरण है पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा समय में सरकार चलाने वालों में सबसे महत्वपूर्ण चेहरों में से एक जीतन राम मांझी के क्षेत्र की स्वास्थ्य व्यवस्था की है।
पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी मौजूदा समय में सरकार के अंदर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है तो उनके बेटे खुद नीतीश कुमार के सरकार में मंत्री पद पर है और हर समय जीतन राम मांझी किसी ना किसी बात को लेकर सरकार पर सवाल उठाते रहे हैं लेकिन शायद ही आपने सुना होगा कि जीतन राम मांझी सरकार पर इस बात के लिए सवाल उठा रहे है की उनके अपने क्षेत्र की स्वास्थ्य व्यवस्था एकदम लचर है और सरकार उसे ठीक क्यों नहीं कराती या फिर ठीक कराने में मदद क्यों नहीं करती? वैक्सीन के सर्टिफिकेट पर प्रधानमंत्री का फोटो है इसको लेकर सवाल पूछने वाले जीतन राम मांझी शायद ही कभी यह सवाल पूछ पाए की उनके क्षेत्र में बनाए गए स्वास्थ्य केंद्रों पर गाय क्यों बांधी जा रही हैं और इसका जिम्मेदार कौन है? अगर बड़े नेताओं के क्षेत्र में स्वास्थ्य की ऐसी हालत है तो बाकी क्षेत्रों की हालत कितनी खराब होगी इसका अंदाजा आप भली भांति लगा सकते है।
आप ऐसे समझिए कि सरकार की तरफ से किसी स्वास्थ्य केंद्र के भवन का निर्माण कराया गया लेकिन वहां डॉक्टरों की तैनाती नहीं हो सकी या फिर डॉक्टरों की तैनाती हुई तो महीने में 1 दिन के लिए या फिर 2 दिन के लिए और ऐसा करते-करते एक दिन वो स्वास्थ्य केंद्र बंद हो गया। कुछ दिन तक बंद रहने के बाद स्वास्थ्य केंद्र का भवन जर्जर हालत में पहुंच जाता है क्योंकि उसका देख-रेख नहीं हो सका। अब इसके बाद वहां आस-पास के लोगों ने उस आपदा में अवसर ढूढ़ लिया। हमारे प्रधानमंत्री जी तो खुद बोलते हैं कि आपदा में अवसर ढूंढना चाहिए। लोगों ने स्वास्थ्य केंद्र के उस बंद पड़े भवन में अवसर को देखते हुए पशुओं को बांधना शुरू कर दिया और फिर धीरे-धीरे उनका चारा भी वहीं रखा जाता है और इस प्रकार लोग आपदा को अवसर में बदल देते है।
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कितनी शानदार बात है कि लोग प्रधानमंत्री की बातों को इतनी गंभीरता से ले रहे हैं और सरकार भी पहले उन्हें आपदा देती है और फिर उन्हें मौका देती है कि इसे अवसर में तब्दील कर लीजिए। सरकार कह सकती है की अगर हमने स्वास्थ्य केंद्रों को बंद ही ना किया होता तो आप अपने इस टैलेंट को कहां दिखाते की किसी स्वास्थ्य केंद्र को गौशाला बना दिया जाए। अब इस तस्वीर को देखिए। उपर की तस्वीर पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के विधानसभा क्षेत्र इमामगंज की है। अपने मन में किसी प्रकार का कन्फ्यूजन पैदा मत कीजिएगा, यह कोई गौशाला का भवन नहीं बल्कि वहां का एपीएचसी है। जिसके भरोसे लोगों का इलाज होना था वहां गायों को चारा खिलाया जा रहा है। वैसे अब और कितने अच्छे दिन चाहिए?
यहां तो सरकार खुद भवन बनवा कर आपको दे रही है कि इसमें अपने पशुओं को बांधिए, उसका चारा रखिए, उसे खिलाइए। हमारे ख्याल से ऐसे जितने भी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं जहां गायों को बांधा जा रहा है उसका नाम बदलकर सामुदायिक गौशाला कर देना चाहिए। कम से कम सरकार की उपलब्धियों में एक और नाम तो जुड़ जाएगा।
जीतन राम मांझी के क्षेत्र से जो तस्वीर सामने आया है वह कादीपुर गांव का है। गांव के लोगों का कहना है कि छोटी सी बीमारी के इलाज के लिए भी हमें 18 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। गांव के लोगों ने एक निजी चैनल से बातचीत के दौरान बताया कि जब कभी भवन ठीक-ठाक स्थिति में था तो कभी-कभी एएनएम आ जाती थीं लेकिन भवन 4 साल पहले क्षतिग्रस्त हो गया जिसके बाद से ना सरकार ने बनवाया और ना कभी कोई एएनएम आती है। ग्रामीणों ने कहा कि महीने दो महीने पर कभी अगर एएनएम आ भी जाती है तो गांव वालों के घर में ही बैठकर अपना काम करती हैं और चली जाती हैं।
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अब जीतन राम मांझी के क्षेत्र इमामगंज के छकरबंधा पंचायत में एपीएचसी बनकर तैयार हो गया लेकिन केवल भवन बन जाने से इलाज तो होगा नहीं। 20 साल के बाद भी वहां किसी की नियुक्ति नहीं हो सकी। अब इसके जिम्मेदार कौन लोग हैं यह ना सरकार को पता है और ना हमें पता है। वैसे भी सरकारी आंकड़ों में तो सब कुछ एकदम चका-चक चल रहा है। क्षेत्र के लोगों ने बताया कि कई बार विभाग को पत्र लिखा जा चुका है, इसके अलावा इस बार जब कोरोना महामारी कहर बनकर टूटा तब भी कई बार पत्र लिखा गया लेकिन विभाग की तरफ से उस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई। वैसे बिहार के हर जिले की ऐसी तस्वीर है जहां सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में लोग गाय और भैंसों को बांध रहे हैं। खैर, सुशासन की सरकार है और अब कुछ दिन का इंतजार कीजिए फिर बाढ़ वाली तस्वीरें अब तक पहुंचने शुरू हो जाएगी।