पटना: एक आईएएस अधिकारी जिससे परेशान होकर मुख्यमंत्री रहते हुए लालू प्रसाद यादव ने अपने गृह जिले गोपालगंज से उसका ट्रांसफर करा दिया था। एक ऐसा अधिकारी जिसके कार्यशैली से लालू यादव इतने परेशान हो गए कि उसे सचिवालय में बुलाना पड़ा। एक अधिकारी जिसके ऊपर आरोप लगता है कि उसने एक ठेकेदार को धमकी देने के साथ उसके कनपट्टी पर अपना रिवाल्वर सटा दिया था। हम बात कर रहे हैं चर्चित आईएएस अधिकारी के.के पाठक की। के.के पाठक को नीतीश कुमार ने फिर से वापस उसी शराब को रोकने के लिए बुलाया है जिनके ऊपर इसके पहले भी भरोसा किया गया था लेकिन फिर उन्हें वहां से हटाया भी गया था।
शराबबंदी को सफल बनाने की जिम्मेदारी के.के पाठक के कंधों पर लादी गई है और जब से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने इस प्रिय आईएस को एक बार फिर से अहम जिम्मेदारी सौंपी है तब से लगातार के.के पाठक की चर्चा चल रही है। बिहार में वैसे भी के.के पाठक उस समय वापस बुलाए गए थे जब नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव एक साथ हाथ मिलाकर चलते थे। के.के पाठक के वापसी के साथ ही विपक्ष के द्वारा कई प्रकार के सवाल भी उठाए जा रहे हैं और सबसे बड़ा सवाल यही है कि अगर पूर्व में के.के पाठक को शराब वाली विभाग से निकालकर कहीं और भेजा गया था तो इसका मतलब यह था कि उन्होंने वहां अच्छा काम नहीं किया और फिर अब उन पर भरोसा करते हुए, उनकी वापसी का क्या मतलब है?
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केशव कुमार पाठक उर्फ केके पाठक। मौजूदा समय में बिहार के लोगों के लिए यह नाम बिल्कुल जाना पहचाना है क्योंकि पिछले 2 दिन से केके पाठक लगातार मीडिया की सुर्खियों में बने हुए हैं। राजनीतिक रूप से केके पाठक के ऊपर टिप्पणियां हो रही है। कई प्रकार के सवाल भी उठाए जा रहे हैं तो उनके कड़क ऑफिसर वाले छवि को भी बताया जा रहा है। सबसे पहले आप जानिए कि केशव कुमार पाठक उर्फ केके पाठक उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं और 1990 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। 2015 के पहले केके पाठक बिहार में नहीं बल्कि दिल्ली में नियुक्त किए गए थे लेकिन 2015 में जब महागठबंधन की सरकार आई मतलब कि नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव की मिली जुली सरकार आई तो उन्हें दिल्ली से वापस बिहार बुलाया गया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को उस समय शराबबंदी का कानून लागू करना था क्योंकि जगह-जगह नीतीश कुमार के विरोध प्रदर्शन में महिलाएं चढ़-बढ़ कर हिस्सा ले रही थी।
नीतीश कुमार के आदेश पर ही बिहार के गांव-गांव में शराब के ठेके खुलवाए गए थे लेकिन 2015 में नीतीश कुमार ने मन बना लिया था कि अब बिहार में शराब बंद किया जाएगा। जब के.के पाठक की वापसी बिहार में हुई तो नीतीश कुमार की सरकार ने उन्हें शराबबंदी कानून के लिए ड्राफ्ट तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी। जिस शराब बंदी कानून को बिहार में लागू किया गया है, इसका मसौदा केके पाठक के द्वारा ही तैयार किया गया था। हालांकि इसके पहले केके पाठक और लालू प्रसाद यादव के बीच की एक और दिलचस्प कहानी है। जब लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री हुआ करते थे तब उन्होंने के.के पाठक को अपने गृह जनपद गोपालगंज का जिलाधिकारी बना दिया। लालू प्रसाद यादव ने शायद सोचा होगा कि उनके इशारे पर यह अधिकारी काम करेगा लेकिन के.के पाठक वहां तन कर खड़े हो गए।
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कहा जाता है कि लालू प्रसाद यादव के कई करीबियों से उनकी बनती नहीं थी और फिर आखिरकार लालू प्रसाद यादव इतने मजबूर हुए की उन्होंने के.के पाठक को गोपालगंज से हटाकर सचिवालय में बुला लिया। उस समय भी केके पाठक के मिजाज के बारे में खूब चर्चा चली थी और आज भी केके पाठक और लालू प्रसाद यादव के बीच हुए इस कोल्ड वार की कहानी सुनाई जाती है। एक और मामला 2019 का है जब केके पाठक सिंचाई विभाग से जुड़े हुए थे और उस समय उनके ऊपर एक ठेकेदार की तरफ से आरोप लगाया गया कि उन्होंने उसके साथ मारपीट किया है और उसके कनपटी पर अपना रिवाल्वर भी तान दिया था। उस समय भी केके पाठक काफी चर्चा में रहे थे और इससे भी पहले पटना हाई कोर्ट के द्वारा उन पर लाखों रुपया का जुर्माना लगाया गया था क्योंकि उन्होंने बैंक के कुछ कर्मचारियों पर कार्रवाई की थी। हाई कोर्ट ने कहा था कि यह कार्रवाई तर्कसंगत नहीं थी और केके पाठक पर यह आरोप लगाया गया था कि उनकी तरफ से मनमानी करते हुए यह पूरी कार्रवाई सात अलग-अलग ब्रांचों के बैंक मैनेजरों पर की गई है। उस समय केके पाठक ने 7 अलग-अलग बैंक मैनेजरों पर आदेश देकर एफआईआर दर्ज करा दिया था। अब फिलहाल शराबबंदी कानून को सफल बनाने के लिए और बिहार में अवैध रूप से शराब का जो कारोबार चल रहा है उसे रोकने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने केके पाठक पर विश्वास जताया है।
के के पाठक की जमकर चर्चा भी हो रही है और उम्मीद करते हैं कि जितनी जोर शोर से इनकी चर्चा हो रही है उतने ही जोर-शोर से यह काम भी करेंगे। बाकी विपक्ष यह भी सवाल उठा रहा है कि जब एक बार इनको शराबबंदी वाले विभाग से बाहर किया जा चुका था तो फिर उन्हें वापस क्यों बुलाया गया है? मतलब की विपक्ष कह रहा है कि उस समय केके पाठक का असफल रहे थे तो फिर से विश्वास करने का क्या फायदा? बाकी देखना होगा कि क्या वाकई स्थिति सुधरती है या ज्यों की त्यों बनी रहती है।
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