पटना: बिहार में एक तरफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शराबबंदी को सफल बनाने के लिए समाज सुधार अभियान चला रहे हैं तो वहीं दूसरी और भाजपा नेता व राज्यसभा सांसद सुशील मोदी ने इस मसले पर इस्लाम और इस्लामिक देशों की तारीफ की है। उन्होंने इस्लाम और इस्लामिक देशों में शराबबंदी का हवाला देते हुए बिहार में लागू मद्य निषेध कानून को सही ठहराया। पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने कहा कि इस्लाम में शराब का सेवन गुनाह बताया गया है। इसीलिए मुसलिम देशों में पूर्ण शराबबंदी लागू है। वहां स्थानीय नागरिकों पर कड़े शराबबंदी कानून लागू हैं।
राज्यसभा सांसद और पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने शराबबंदी को सही करार देते हुए कहा कि कोई भी धर्म शराब पीने को जायज नहीं ठहराता, फिर भी कुछ लोग इसके पक्ष में दलील देकर लोगों को गुमराह कर रहे हैं, जो बिल्कुल गलत है। सुशील कुमार मोदी ने सोमवार को मीडिया से बातचीत में कहा कि बिहार में पूर्ण शराबबंदी की सफलता के लिए राज्य सरकार ने हाल ही में जो बड़े प्रशासनिक बदलाव किए है और इसके बेहतर परिणाम देखने को मिल रहा है। शराबबंदी कानून से जुड़े मुकदमों का बोझ कम करने के लिए 75 विशेष अदालतें गठित करने का फैसला भी सरकार के द्वारा लिया गया है, जो सराहनीय है।
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भाजपा नेता व राज्यसभा सांसद सुशील मोदी ने कहा कि ऐसे मामले जल्द निपटाए जाने चाहिए, जिसमें शराब खरीद-बिक्री का मामला हो। इसमें तेजी लाने से मदिरा सेवन के आरोपी को न्याय मिलने में देरी नहीं होगा। कार्यपालिका और न्यायपालिका मिलकर ही किसी नेक कानून को जनता में स्वीकार्य बना सकते हैं। इसीलिए सरकार का प्रयास है कि कारवाई में तेजी आए। सुशील मोदी ने कहा कि बिहार ऐसा पहला राज्य है, जहां समाज सुधार और राजनीति साथ-साथ चलती है। शराबबंदी कानून की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा कि सरकार ने घरेलू हिंसा रोकने और सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाने के खयाल से शराबबंदी कानून लागू किया।
विशेष न्यायालय के जरिए होगी मामलों की सुनवाई :
बता दें कि राज्य के न्यायालयों में शराब से जुड़े मामलों का बढ़ता बोझ देखते हुए सभी जिलों में विशेष न्यायालयों का गठन किया गया है। पहले हर जिले में एक-एक विशेष न्यायालय के जरिए शराब तस्करी और शराब के सेवन से जुड़े मामलों की सुनवाई की जाती थी। लेकिन अब ऐसे न्यायालयों की संख्या बढ़ाकर हर जिले में दो से चार तक की जा रही है। बावजूद इसके शराबबंदी कानून के जरिए इतने मामले सामने आ रहे हैं कि न्यायालयों की संख्या बढ़ाए जाने के बाद भी मामले की सुनवाई नहीं हो प रही है।
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