पटना: राजद सुप्रीमो लालू यादव के 17 से अधिक स्थानों पर सीबीआई छापेमारी कर रही है। दरअसल, आरोप है कि लालू प्रसाद यादव जब रेल मंत्री थे तब उन्होंने अपने कई जानने वाले को रेलवे में नौकरी दिलाई थी और इसके बदले उनके परिवार वालों को सस्ती दरों पर जमीन मिली थी। एकाएक हरकत में आई सीबीआई की कार्रवाई के क्या मायने हैं? अब यह प्रश्न उठने लगे हैं। क्या वाकई में सीबीआई मामले को सुलझाना चाहती है या फिर केंद्रीय जांच एजेंसी को आगे कर पर्दे के पीछे कोई दूसरा खेल खेला जा रहा है? आइए समझते हैं कि आखिर क्या है पूरा मामला?
राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव पर पहला आरोप है कि 2004 से 2009 तक यानी अब से 13 साल पहले उन्होंने रेलवे में नौकरी देने के लिए लोगों से जमीन और पैसे लिए थे। वहीं दूसरा आरोप है कि रेल मंत्री रहने के दौरान लालू प्रसाद यादव ने रेलवे की कंपनी आईआरसीटीसी के रांची और पूरी के दो होटलों को पाने निजी लोगों को सौंप दिया और उसके बदले अपने परिजनों के नाम पर जमीन लिखवाया।
लालू प्रसाद यादव के रेल मंत्री पद से हटने के 8 साल बाद 2017 में अचानक से यह मामला तूल पकड़ा था। इस वक्त बिहार में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव मिलकर सरकार चला रहे थे और तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सहयोगी के तौर पर उपमुख्यमंत्री थे। 2017 में जब सीबीआई और ईडी जैसी एजेंसियों ने इस मामले में कार्रवाई शुरू की तो तेजस्वी यादव भी इसके चपेट में आ गए थे। तेजस्वी यादव पर आरोप था कि लालू प्रसाद यादव ने उनके नाम पर भी अवैध संपत्ति लिखवाई है। इसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भ्रष्टाचार से समझौता ना करने का ऐलान करते हुए राजद के साथ गठबंधन तोड़कर भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर बिहार में सरकार बना ली थी।
तेजस्वी और नीतीश की बढ़ी करीबी:
बिहार में पिछले कुछ महीनों में हुए सियासी घटनाक्रम पर नजर डालें तो हम पाते हैं कि सीएम नीतीश कुमार और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की बढ़ी है। तेजस्वी यादव ने जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को दावते इफ्तार में आने का निमंत्रण दिया तो सीएम नीतीश पैदल पहुंच गए। इसके बाद जब जनता दल यूनाइटेड यानी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी की ओर से दावते इफ्तार का आयोजन किया गया तो तेजस्वी यादव पहुंचे और इस दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद तेजस्वी यादव को गाड़ी तक छोड़ने आए। इस प्रकार से नीतीश कुमार और तेजस्वी के मिलने से अटकलों का बाजार गर्म था।
पिछले दिनों नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने अचानक से जातीय जनगणना के मुद्दे पर प्रेस कॉन्फ्रेंस किया और पटना से दिल्ली तक पैदल मार्च का ऐलान कर दिया। इसके बाद मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से तेजस्वी यादव को बुलावा आया और तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलने अकेले पहुंच गए। दोनों नेताओं से बातचीत के बाद तेजस्वी यादव के सुर बदले बदले नजर आए। बताया जा रहा है कि इसके बाद भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व की नजर बिहार की सियासी घटनाक्रम पर पड़ा।
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जाति जनगणना के बहाने पलटी मारने वाले सीएम नीतीश?
पिछले कुछ महीने से बिहार में जातीय जनगणना का मुद्दा गर्म है। एक तरफ नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव राज्य में जातीय जनगणना लागू करने का मांग कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ जनता दल यूनाइटेड और खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इसके पक्ष में बयान देते नजर आए हैं। लेकिन बिहार सरकार में सहयोगी दल भाजपा जातीय जनगणना के मुद्दे पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ नहीं है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी को आशंका मुख्यमंत्री नीतीश कुमार किसी भी पल पलटी मार सकते थे यानी सीएम नीतीश राजद के साथ जाकर सरकार बना सकते थे। क्योंकि पिछले कुछ दिनों से राज्य में जातीय जनगणना का मुद्दा गरम है और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव इस मुद्दे पर एक साथ हैं। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी को डर था कि नीतीश कुमार जातीय जनगणना के सहारे पलटी मार सकते हैं इससे ना सिर्फ भाजपा सरकार से बाहर हो जाएगी बल्कि उसके वोट बैंक पर भी इसका बड़ा असर पड़ता। अगर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव साथ मिलकर जाति जनगणना को 2024 के चुनाव में बड़ा मुद्दा बना देते तो फिर भाजपा के लिए बिहार में लोकसभा चुनाव मुश्किल भरा हो सकता था।
इसलिए हुई छापेमारी!
सीबीआई के सूत्रों की माने तो लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार के खिलाफ नया केस भी दर्ज किया गया है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि रेल मंत्री की जिस कुर्सी से लालू प्रसाद यादव 13 साल पहले हट चुके हैं उसमें सीबीआई जांच केंद्र सरकार की किसी एजेंसी को ऐसा क्या सबूत मिल गया? जो इस फाइल को अब खोला गया है। सीबीआई की छापेमारी और किस को लेकर फिलहाल आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई है लेकिन जो 86 मैसेज देना था, शायद दिया जा चुका है। सबसे बड़ा सवाल है कि 2017 में भ्रष्टाचार के मामले पर लालू परिवार से दूर होने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और क्या करेंगे? क्या अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भ्रष्टाचार के अपने एजेंट को भूलकर तेजस्वी को गले लगाएंगे या फिर भारतीय जनता पार्टी के साथ गतिरोध के बावजूद बिहार में सरकार चलाते रहेंगे।
लालू परिवार पर छापेमारी के बहाने नीतीश को संदेश:
सियासी गलियारों में चर्चा चल रही है कि भारतीय जनता पार्टी ने लालू परिवार पर छापेमारी के जरिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पलट कर दिया है। जानकारी के लिए बता दें कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लंबे समय तक केंद्र सरकार में रेल मंत्री रहे हैं और उनके दौर में हुई कथित घोटाले की फाइल अभी बंद नहीं हुई है। इसके अलावा बिहार में सृजन घोटाले की जांच भी सीबीआई के पास है। इसकी जांच भी काफी आगे जा सकती है लेकिन फिलहाल था ठंडे बस्ते में रखा हुआ है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी बहुत आसानी से बिहार की सत्ता से बेदखल नहीं होने वाली है।
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