‘हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है, बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा।’
अल्लामा इकबाल
अल्लामा इकबाल ने जब यह शेर लिखा होगा तो उनको नहीं पता होगा कि 21वीं सदी के दूसरे दशक में कोई ऐसा अभिनेता अपने अभिनय के उस उरूज पर पहुंचेगा जहां से तमाम सिनेमा मैं चिकने गालों और गालों पर पड़े गड्ढों पर यह लोट हो रहा होगा वहां एक आदमी अपनी आवाज में भरी खराश और चेहरे पर उम्र के ढलते निशानों को लिए हुए दुनिया के जवानों को अपनी आंखों के इशारों पर नचा के रख देगा। और साबित करेगा कि हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पर जब रोएगी तो असल में खुदा का करम होगा और एक ऐसा नूर पूरे जहान पर पसर जाएगा जिसको सदियां सलाम करेंगी और तमाम पैमान धरे के धरे रह जायेंगे।
करीब करीब सिंगल में जब इरफान यह कहता है कि टोटल तीन बार इश्क किया और तीनों बार ऐसा इश्क मतलब जानलेवा इश्क… मतलब घनघोर हद पार ! तो पता चलता है कि इश्क में डूबा हुआ आदमी कैसा दिखता है संभवत किसी लेखक को वह बुद्ध जैसा दिख सकता है, किसी चिंतक को उसमें कृष्ण दिख सकते हैं, किसी को कुछ भी देख सकता है लेकिन हमको इरफान दिखता है क्या करें इरफान ने कुछ इस कदर अपनी सरगोशी में हमको समेट लिया था उस डायलॉग से की इरफान के जाने के इतने दिनों बाद भी हमारा दिल इस बात की इजाजत नहीं देता है कि इरफान चले गए हैं। मैं इरफान की शान में कसीदा नहीं पढ़ रहा हूं, ये वो इरफान है जो मेरे हिस्से आया और कभी नहीं गया।
बीहड़ में बागी पैदा होते हैं डकैत मिलते हैं पार्लियामेंट में, पान सिंह तोमर बन कर जब इरफान खान ने यह डायलॉग बोला था, तो हम बिहार को देख रहे थे और बिहार छोड़कर पूरी दुनिया हमें बीहड़ नजर आ रही थी और वहीं से हमने सोचा था कि इस बीहड़ से निकल कर हम बिहार के पार्लियामेंट में बैठे डकैतों की कहानियां पूरे बिहार को घूम कर सुनाएंगे और हमारे लिए इरफान यही थे, इरफान को आज देखना रात की आखिरी सिगरेट पीने जैसा है, जिसको पीते हुए यह पता है कि यह सिगरेट आखिरी है और आज की रात इसके बाद कोई कश गले के भीतर नहीं जाएगा लेकिन हम आखिर कश तक उसको जीते हैं और उसके बाद की तनहाई को शौक से गले से लगाते हैं।
इरफान वो दरख़्त हैं जिन्हें हम रेल की खिड़कियों से देखते हैं गुजरते हुए और हमें लगता है कि यह दरख़्त भी चल रहे हैं लेकिन असलियत में वह दरख़्त जो हमें चलता हुआ नजर आ रहा था वह कहीं ठहरा हुआ है और किसी अवॉर्ड शो में जब पहुंचता है और किसी अभिनेत्री से हाथ मिलाते वक्त उसके मुंह से सिगरेट की गंध आ जाती है तो अभिनेत्री कहती है कि इरफान तुम सिगरेट पीना आप कम कर दो तो इरफान कहता है कि मैडम मैं आजकल सिगरेट के फ्लेवर वाला डीओ लगाता हूं। हमको एक ही फ्रेम में रुलाकर हंसा कर और सोचने में मजबूर और मशहूर करके इरफान कहीं दूर सिगरेट के धुएं के साथ अपने उस तमाम काम को अलविदा कह देता है और एक बार कसके अपनी लट्टू जैसी नजरों से नजरों को देख कर उन पर एहसान करता है और हमेशा के लिए उन डोलती नजरों को रोक देता है और हमें लगता है कि एक कहानी खत्म हुई लेकिन कलाकर असलियत में मर चुका होता है।
जब इरफान ने यह साली जिंदगी में डायलॉग कहा था कि लोग सुनेंगे तो क्या कहेंगे ? चूतिया आशिकी के चक्कर में मर गया और लौंडिया भी नहीं मिली। कहने को ऐसा लग रहा होगा कि इस डायलॉग में गाली है लेकिन इंद्रजीत प्रताप सिंह कहता है ना हमारी तो गाली पर भी ताली पड़ती है !
हमारे इरफान को तो सात खून माफ हैं, जब यह कह देता है कि एक बार तो यूं होगा, थोड़ा सा सुकून होगा, ना दिल में कसक होगी, ना सर में जुनून होगा। इरफान दुनिया के तमाम जुनूनो के बीच थोड़ा सा सुकून है। और वह यह मानता है कि किस्मत की एक खास बात होती है कि वह पलटती है। और इसी यकीन के साथ हो कह देता है कि मोहब्बत है इसीलिए तो जाने दिया जिद होती तो बाहों में होती। और इरफान ने बस ऐसे ही शौकिया अंदाज में या लड़कपन में यह नहीं कहा था याद करिए जब उसने यह कहा था कि the key to a happy life is to accept you are never actually in control. इरफान दरअसल वक्त के साथ इतना बड़ा हो रहा था कि उसके छुपने की जगह कम पड़ने लगी थी। हम सभी अपनी जिंदगी में एक ऐसा वक्त आता है जब छुपने के लिए एक ऐसी गुफा तलाश में लगते हैं जहां पर हम अपने घुटनों के बीच अपना सिर रखकर के खुद से खुद को छुपा सकें, क्योंकि हमने जिंदगी में कुछ ऐसा किया होता है जो हमको करना नहीं पड़ता बस हो जाता है। और धीरे-धीरे हम एक शैतान की तरह बड़े होने लगते हैं और हमारे भीतर का शैतान हमसे एक चाल चलने को कहता है और वह चार लिए होती है कि शैतान कभी सामने नहीं आता।
हम एक रोज दुनिया से छुप जाना चाहते हैं और चाहते हैं कि किसी जिस्म की रूह तो रहे लेकिन उस जिस्म की कोई पहचान ना रहे। क्योंकि हमें एक रोज यह यकीन बदतरज होने लगता है कि, यह शहर यह दुनिया हमें जितना देती है उसके बदले में हमसे कहीं ज्यादा ले लेती है और हम अपना कमाया हुआ कुछ भी नहीं देना चाहते हैं क्योंकि उसमें हमारा पसीना और खून शामिल होता है और हम हर कतरे के मालिक बने रहना चाहते हैं लेकिन असलियत उससे कहीं, कहीं बहुत दूर होती है। और हम एक रोज मदारी जैसा महसूस करने लगते हैं खोने और पाने की जिद के बीच हमारे भीतर कहीं बहुत भीतर यह बात हमेशा के लिए ठहर जाती है कि तुम मेरी दुनिया छीनोगे, मैं तुम्हारी दुनिया में कोई जाऊंगा।
और हमारी ये जिद जब हम पर कस के हावी हो जाती है और हमको इसका एहसास बंद हो जाता है कि डेथ और शिट, किसी को, कहीं भी, कभी भी, आ सकती है।