पटना: बिहार सरकार ने बुधवार को कोरोना संबंधित संशोधित आंकड़े जारी किए, जिसमें कहा गया है कि राज्य में 9 जून तक कोरोना से मरने वालों की संख्या 5,458 नहीं बल्कि 9,429 थे। अब तक जारी किए गए आँकड़े गलत थे और अब जो आँकड़े सामने आए हैं वो काफी चौंकाने वाले हैं। हालांकि बिहार सरकार पर लगातार विपक्ष और उच्च न्यायालय के द्वारा आँकड़े छुपाने की या गलत आँकड़े जारी करने को लेकर टिप्पणी की जाती रही है, जो अब कहीं न कहीं सच साबित होता नजर आ रहा है।
एक दिन में 3,951 से अधिक मौतों की यह विवादास्पद छलांग (जो मरने वालों की संख्या में 72 प्रतिशत की वृद्धि है) ने राज्य के COVID-19 प्रबंधन पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। COVID-19 महामारी की दूसरी लहर से बिहार सबसे बुरी तरह प्रभावित राज्यों में से एक है। बावजूद इसके बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था काफी लचर रही है। सरकारी एवं प्राइवेट अस्पताल सेवा देने में नाकाम रहे और अब जब ये आंकड़ा सामने आया है तो इस बात की भी पुष्टि होती है की सरकारों ने आंकड़ा “छुपाया” है।
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एक अखबार के मुताबिक केवल अप्रैल और मई के दौरान पटना के केवल 3 घाटों पर ही 3 हजार 243 लोगों का अंतिम संस्कार कोविड प्रोटोकॉल के तहत किया गया है। और अगर सरकारी आंकड़ों की मानें तो सरकादी आँकड़े अभी भी गलत दिखाए जा रहे हैं।
मामला कैसे आया सामने?
यह मुद्दा तब सामने आया जब पटना उच्च न्यायालय ने बक्सर जिले में मौत के आंकड़ों में अनियमितताओं को हरी झंडी दिखाई और अप्रैल-मई में कोरोना के दूसरे उछाल में मरने वालों की संख्या का ऑडिट करने के लिए कहा था। अदालत का आदेश उन आरोपों के बाद आया है कि राज्य सरकार ने निजी अस्पतालों और घरों में COVID-19 मौतों का ऑडिट किया था। आपको बता दें कि कुछ दिनों पहले बिहार के बक्सर में गंगा नदी के किनारे 70 से ज्यादा लाशें पाई गई थी, जिसके बाद प्रसाशन और सरकार में हलचल मच गई थी। विपक्ष बार बार सरकार पर आंकड़ों को छुपाने का इल्जाम लगा रहा था तो वहीं पटना उच्च न्यायालय ने कड़े शब्दों में इसकी जांच करने का आदेश दे दिया था।
अब कुल मिलाकर यह राज्य के उस व्यवस्था का प्रमाण है जो बिल्कुल खराब हो चुका है। सरकार की तरफ से आगे उन अधिकारियों पर क्या कार्रवाई की जाती है जिन्होंने कोरोना के आंकड़ो में खेल किया यह देखने लायक होगा।
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