पटना: बिहार की राजनीति में काफी दिनों से एक शब्द काफी चर्चा में है, वो शब्द है ‘पीएम मटेरियल।’ बता दें कि पिछले कई दिनों से चर्चा में बने इस शब्द ने तब और तुल पकड़ लिया जब जदयू की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में यह प्रस्ताव पारित किया गया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पीएम मटेरियल हैं। पार्टी के तमाम नेताओं ने एक सुर में यह कहा कि नीतीश कुमार में पीएम बनने के तमाम गुण मौजूद हैं। हालांकि एनडीए में प्रधानमंत्री पद के लिए नरेन्द्र मोदी ही दावेदार हैं, लेकिन सवाल पैदा होता है कि आखिर राष्ट्रीय परिषद की बैठक में नीतीश कुमार का नाम पारित करने के क्या मायने है?
बता दें कि पिछले दिनों नीतीश कुमार ने पीएम मटेरियल के सवाल पर कहा था कि उनकी कोई ऐसी इच्छा या आकांक्षा नहीं है। उन्होंने कहा था कि हम लोगों की इन चीजों में कोई दिलचस्पी नहीं है। राष्ट्रीय परिषद की बैठक के बाद भी मुख्यमंत्री ने मीडिया के सवाल पर मुस्कराते हुए जवाब दिया कि मुझे इसमें कोई रुचि नहीं है। हालांकि एक सच्चाई यह भी है कि नीतीश कुमार ने 2015 में प्रधानमंत्री पद की महत्वकांक्षा के कारण ही एनडीए का साथ छोड़ा था।
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जातीय जनगणना और जनसंख्या कानून के मुद्दे पर एनडीए में घमासान जारी है। सभी दल अपनी सुविधानुसार राजनीति कर रहे हैं। पिछड़ों के वोट बैंक पर कैसे अपनी पकड़ मजबूत बने? सब दल इसी जुगाड़ में लगे हैं। आप इसी बात से इन दलों की मंशा जान सकते है कि आपस में घोर विरोधी नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव जातीय जनगणना के मुद्दे पर एक साथ आ गए हैं। पिछले दिनों दोनों नेताओं ने बिहार के सभी नेताओं के साथ प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की।
राजनीति संभावनाओं का खेल और देश में जिस तरह से तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट होने लगी है, पीएम नरेन्द्र मोदी के विरोध के खेल में राहुल गांधी के नेतृत्व को ममता बनर्जी ने चुनौती दी है, उससे राष्ट्रीय स्तर पर नरेन्द्र मोदी के विकल्प के तौर पर चेहरा स्थापित करने की कवायद तेज होने लगी है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जदयू थिंक टैंक भविष्य की राजनीति को ध्यान में रखते हुए नीतीश कुमार को भी पीएम पद के लिेए योग्य उम्मीदवार होने पर तीसरे मोर्चे का ध्यान एकत्रित करना चाह रही है।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि जदयू एक रणनीति के तहत बीजेपी नेतृत्व को मैसेज दे रही है कि भाजपा उसे हल्के में न लें। साथ ही जिस तरह पिछले दिनों भाजपा के कुछ नेताओं ने खुलकर गठबंधन सरकार की मजबूरी बताते हुए बिहार में भाजपा की सरकार बनाने के लिए कार्यकर्ताओं से आह्वान किया था। बिहार एनडीए में अभी दबाव की राजनीति भी चरम पर है। अपने को बेहतर बताने की होड़ में सभी पार्टी द्वारा बयानों की झड़ी लगी हुई है। हालांकि पीएम मैटेरियल संबधी बयान बिहार की राजनीति में क्या रंग लाएगी? इसके लिए थोड़ा इंतजार करना होगा।
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