पटना: एम्स अस्पताल में लोग अकसर बेहतर इलाज एवं सुविधा के लिए आते है। लेकिन, पटना एम्स से डॉक्टरों की लापरवाही का एक मामला सामने आया है। यहां ऑपरेशन के क्रम में एक महिला मरीज के पेट में ही रूई (कॉटन) छोड़ दिया गया। इस महिला की सर्जरी बीते साल सितंबर महीने में हुई थी। ऑपरेशन के नौ महीने बाद जब महिला के पेट में दर्द उठा तो अल्ट्रा साउन्ड कराया गया, जहां जांच में पेट के अंदर रूई होने की बात सामने आई। खास बात ये है कि पीड़िता भी मेडिकल लाइन से है और एम्स के गैस्ट्रो विभाग में इंटर्नशिप कर चुकी है।
पीड़िता डॉ पूजा ने बताया लगभग 9 महीना पहले एम्स में गायनी विभाग में उन्होंने अपना इलाज करवाया था। उस दौरान इलाज तो हुआ लेकिन ऑपरेशन के दौरान उनके पेट में कॉटन छोड़ दिया गया। ऑपरेशन के 15 दिन बाद ही टांका पक गया तो एम्स दिखाने के लिए पूजा दोबारा आई थी। इस पर डॉ हिमानी ने फटकार लगाते हुए कहा था कि लापरवाही की वजह से टांका पक गया। पीड़िता डॉक्टर पूजा ने बताया कि एम्स की यह पांचवीं लापरवाही सामने आई है। जब एम्स में पूजा ने शिकायत की तो उनके साथ मारपीट भी की गई और केस करने की भी कोशिश की गई।
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डॉक्टर पूजा की बहन अंकिता सिंह ने बताया कि एम्स को देश में सेंटर आफ एक्सीलेंस माना जाता है। हम तो सामान्य प्रसव कराने तमाम बड़े प्राइेवट हॉस्पिटल को छोड़कर वहां गये थे। वहां के डाक्टरों ने एक बार ही नहीं, दो-दो बार लापरवाही की। पहली बार यदि मानवीय भूल के कारण गाज छूट भी गया तो जब संक्रमण के कारण बार-बार टांके पक रहे थे तब तो डाक्टरों को इसका कारण जानने का प्रयास करना चाहिए था। सुधार नहीं होने पर उन्होंने पहले प्राइवेट डायगनोस्टिक सेंटर में जांच कराई। वहां गाज होने की बात सामने आने पर एम्स में ऐसा हो सकता है, विश्वास नहीं हुआ इसलिए दोबार एम्स में जांच कराई लेकिन वहां भी इसकी पुष्टि हुई।
एम्स और पुलिस ने नहीं दी शिकायत की प्राप्ति रसीद:
पीड़िता डॉ पूजा कुमारी की बहन ने बताया कि उन्होंने 8 जून को ही पुलिस स्टेशन और एम्स के मेडिकल सुपरिटेंडट के ऑफिस में लिखित शिकायत की थी। पुलिस ने एम्स प्रोटोकाल के अनुसार FIR दर्ज करने में अक्षमता जाहिर करते हुए कंपलेन एम्स मैनेजमेंट भेजने की बात कही थी। एम्स मैनेमेंट ने शनिवार को लिखित शिकायत नहीं मिलने की बात कही थी। उन्होंने कहा था कि लिखित शिकायत मिलेगी तो जांच कर कार्रवाई की जायेगी। कार्रवाई के बजाय एम्स के वरिष्ठ डाक्टरों ने पीडि़ता और परिजन पर ही हंगामा करने का आरोपित बनाते हुए उन पर कार्रवाई की मांग की थी।
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