पटना: कभी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तस्वीर राज्य के किसी शराब माफिया के साथ मुख्यमंत्री आवास में बैठे हुए सामने आती है तो कभी खुद प्रशासन की तरफ से शराब को लेकर कुछ आंकड़े जारी किए जाते हैं जिसे जानकर और समझ कर, यह आसानी से पता लगाया जा सकता है कि नीतीश कुमार की शराबबंदी कितनी सफल रही है। खुद अलग-अलग जिलों की प्रशासन पंचायत चुनाव शुरू होने के पहले निर्वाचन आयोग को जो आंकड़ा सौंपती है, उसमें कहा जाता है कि एक लाख से अधिक पूरे राज्य भर में शराब बनाए जाने वाले भट्ठों को तोड़ा गया है। अब आप सोचिये कि हर पंचायत में दर्जनों शराब भट्ठियां चल रही थी लेकिन पुलिस प्रशासन को इसकी जानकारी तक नहीं थी और पुलिस प्रशासन के पास इसकी जानकारी ना होना भी चकित करने वाला है। अब दैनिक भास्कर ने बिहार पुलिस के हवाले से शराब से जुड़ा हुआ एक आंकड़ा सार्वजनिक किया है।
इस आंकड़े में पुलिस बता रही है कि पिछले 10 महीने में मतलब की 2021 के जनवरी महीने से लेकर अक्टूबर महीने तक राज्य के अंदर 62 हजार से ज्यादा शराब तस्करों की गिरफ्तारी हुई है और 12 हजार से ज्यादा गाड़ियों को भी पकड़ा गया है जिसका इस्तेमाल शराब की तस्करी में किया जा रहा था लेकिन सवाल यह है कि अगर पुलिस इतनी सक्रिय ढंग से काम कर रही थी तो फिर सत्ताधारी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष को आकर यह क्यों कहना पड़ता है कि पुलिस तथा प्रशासन की मदद से शराब का व्यापार चल रहा है और पुलिस की मदद से ही शराब लोगों तक पहुंचाई जा रही है। इसके अलावा अगर राज्य में ही शराब बनाई जा रही है तो इसकी जानकारी पुलिस तक क्यों नहीं पहुंच पाती है।
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शराब माफियाओं से सत्ताधारी पार्टियों के नेताओं की मिली भगत और पुलिस प्रशासन की मिली भगत को लेकर पिछले कुछ समय से लगातार राज्य में बवाल मचा हुआ है। इसी बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ एक पुरानी शराब माफिया की तस्वीर सामने आई है जो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। बताया जा रहा है कि तस्वीर मुख्यमंत्री आवास की है और इस तस्वीर में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ वह शराब माफिया बैठा हुआ है। इस तस्वीर पर तो बवाल मचा हुआ है लेकिन इसी बीच दैनिक भास्कर ने एक रिपोर्ट प्रकाशित किया है जो कि बिहार पुलिस के हवाले से सामने आया है। इसमें बताया गया है कि पिछले 8 महीने में पुलिस के द्वारा 323 डिलीवरी करने वाले लड़कों को पकड़ा गया है जो शराब को लोगों के घर तक पहुंचाते थे। इनका काम सिर्फ इतना होता था कि यह शराब को एक जगह से उठाकर उसे जहां पहुंचाना है, वहां पहुंचाते थे और बदले में उन्हें अपना हिस्सा मिलता था। मतलब कि जो बड़े माफिया हैं, वे यहां भी सुरक्षित हैं।
बिहार पुलिस के प्रति जमा करा दिया गया उसमें बताया गया है कि 8 महीने के अंदर 323 डिलीवरी ब्वॉय को पकड़ा गया है तो वहीं 8 महीने में 115 वाहनों को भी जप्त किया गया है जिसका इस्तेमाल शराब की डिलीवरी में किया जाता था। 115 चार चक्का वाले वाहनों को पकड़ा गया है लेकिन अगर जनवरी से अक्टूबर तक हर प्रकार के वाहनों की बात करें तो उनकी संख्या 12 हजार के भी पार है। यह डाटा दर्शाता है कि बिहार में धड़ल्ले से अवैध शराब का व्यापार लगातार चल रहा है और लाख कोशिश के बावजूद प्रशासन इसे रोक पाने में नाकाम है। जब पुलिस प्रशासन की तरफ से निर्वाचन आयोग को बताया गया कि 1 लाख से अधिक शराब भट्ठियों को तोड़ा गया है तब विपक्ष की तरफ से सवाल उठाया गया कि आखिरकार गिरफ्तारी किन लोगों की हुई है और अगर इतनी ज्यादा संख्या में गिरफ्तारी हुई है तो उन्हें रखा कहां गया है। कहने का मतलब था कि अगर एक लाख से ज्यादा शराब की भर्तियां पकड़ी जाती है तो उसे चलाने वाले भी गिरफ्तार किए जाने चाहिए थे लेकिन पुलिस की तरफ से दिए गए डाटा में ऐसा कुछ जिक्र नहीं था।
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मौजूदा समय में हर कोई जानता है कि बिहार में शराब आपके घर पर पहुंच जाता है, उसके लिए बस आपको कुछ रुपए ज्यादा चुकाने पड़ते हैं। अगर बिहार पुलिस के डाटा पर अब ध्यान देंगे तो आपको पता चलेगा कि इस वर्ष जनवरी से लेकर अक्टूबर तक 150 बड़े कांड दर्ज किए गए हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात है कि खुद सत्ता पक्ष के नेता इस बात को दोहराते हैं कि जो मामला पुलिस के पास पहुंचता है सिर्फ उसी का रिकॉर्ड बनता है लेकिन शराब से हो रही मौत में लोग खुद के परिजनों की मौत को छुपाते हैं क्योंकि उन्हें कानून का डर होता है।
जनवरी महीने से लेकर अक्टूबर महीने तक 2021 में बिहार पुलिस के अनुसार 38 लाख 72 हजार लीटर से ज्यादा शराब बरामद किया गया है जो कहीं ना कहीं शराबबंदी की सफलता वाले दावे पर सवाल उठाता है। पुलिस के अनुसार 62 हजार से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है लेकिन सवाल ये है कि आखिर इतनी गिरफ्तारी के बावजूद शराब को प्रशासन रोक क्यों नहीं पा रही है। आखिर सरकार कब तक खुद के नेताओं तथा खुद के सहयोगी दलों के मुखिया के बातों को अनसुना करती रहेगी? यह सवाल इसलिए क्योंकि सरकार के सहयोगी दलों के नेताओं से लेकर सरकार के अपने विधायक और नेता भी शराबबंदी को लेकर तमाम तरह के सवाल उठा चुके हैं। बाकी पंचायत चुनाव में शराब की जितनी उम्मीद जताई जा रही थी उससे ज़्यादा बिहार में शराब पहुंची और अभी भी पहुंच रही है।
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