पटना: शायद ही कोई ऐसा दिन हो जब बिहार में यह खबर ना आये की फलनवा जगह से शराब पकड़ा गया है। शराबबंदी भले ही बिहार में लागू है लेकिन आपको जानकर ताज्जुब होगा कि आज के समय में भी बिहार के अंदर शराब की जितनी खपत है उतनी उस जगह पर भी नहीं है जहां सरकार की तरफ से शराब को एक प्रकार से प्रमोट किया जाता है ताकि टूरिज्म को बढ़ावा दिया जा सके। कहने का मतलब कि जहां शराब आसानी से हर जगह उपलब्ध है और सबसे बड़ी बात कि बिहार की तुलना में कई गुना सस्ती भी है, वहां भी लोग इतना ज्यादा शराब नहीं पीते जितना शराब बंदी वाले बिहार में लोग पी रहे हैं और यह सब कुछ सरकार की नाक के नीचे हो रहा है और लाख प्रयासों के बावजूद बिहार सरकार यह सबकुछ रोक पाने में असफल है।
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बिहार में शराबबंदी होने के बावजूद लोग महाराष्ट्र जैसे राज्य से ज्यादा शराब बिहार में पीते हैं और ऐसी बात नहीं है कि सरकार को इसका अंदाजा नहीं है। सरकार को सब कुछ पता है लेकिन सब कुछ जानने के बावजूद सरकार केवल खोखला दावा करती है कि राज्य में सब कुछ ठीक है बस छिटपुट लोग अवैध तरीके से शराब का कारोबार कर रहे हैं कि जिन्हें पुलिस पकड़ रही है। सच्चाई यह है कि बिहार में शराब बंदी का असर नाम मात्र का हुआ है। शराब बंदी का असर हुआ है तो सिर्फ सरकारी खजाने पर क्योंकि कल तक जो टैक्स सरकार के पास आ रहा था वो आज माफियाओं के पास जा रहा है या तो दूसरे राज्यों के खजाने में जमा हो रहा है।
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चलिए सबसे पहले जान लीजिए कि बिहार के अंदर मुख्य तौर पर उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल तथा नेपाल से अवैध तरीके के माध्यम से शराब लाई जाती है। अब एक डेटा सुनिए और खान खोलकर सुनिएगा क्योंकि इससे सरकार के दावे की पोल खुल जाएगी। रिपोर्ट में बताया गया है कि हर घण्टे करीब 1 हजार 341 लीटर शराब बिहार पुलिस और मद्य निषेध विभाग द्वारा पकड़ा जाता है। यह आकंड़ा है उस बिहार का जहां पूर्ण शराबबंदी लागू है। आज पटना में 5 लोगों की गिरफ्तारी हुई है क्योंकि वे लोग शराब तस्करी से जुड़े हुए थे। अगर बिहार में औसतन देखा जाए तो हर मिनट 22 लीटर शराब पकड़ा जाता है। अब आप अंदाजा लगाइए की इतना शराब केवल पकड़ा जाता है। इसके अलावा शराब का एक बड़ा हिस्सा तो लोगों के घर मे पहुंच जाता है जिसके बारे में पुलिस और सरकार को जानकारी तक नहीं रहती।
2020 में एक रिपोर्ट आई थी जिसके अंदर बताया गया था कि बिहार एक ड्राई स्टेट है लेकिन ड्राई स्टेट होने के बावजूद बिहार के अंदर 15.5 फीसदी पुरुष शराब का सेवन अभी भी करते है। अब आप उस राज्य के बारे में भी जान लीजिए जहां शराब पर किसी प्रकार का रोक नहीं है और वहां लोग आसानी से शराब पी सकते हैं। महाराष्ट्र के अंदर शराब पर किसी प्रकार की रोक नहीं है लेकिन महाराष्ट्र में 13.9 फीसदी पुरूष ही शराब का सेवन करते हैं जो बिहार के मुकाबले कम है। कहने का मतलब यह है कि महाराष्ट्र सरकार शराब बेचने के बदले में टैक्स लेती है और यहां बिहार में महाराष्ट्र से ज्यादा लोग शराब पी रहे हैं और उसके बदले में सरकार के पास एक फूटी कौड़ी भी नहीं आती है तथा सरकार मंच से झूठी सफलता की कहानी सुनाती है।
अगर ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों की बात करें तो बिहार के शहरी क्षेत्र में 14 फीसदी लोग शराब का सेवन करते हैं तो वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में आंकड़ा 15.8 फीसदी का है। अब एक और महत्वपूर्ण बात कि बिहार के शहरी क्षेत्र में रहने वाली महिलाएं महाराष्ट्र के शहरी क्षेत्र में रहने वाली महिलाओं के मुकाबले ज्यादा शराब पीती हैं। महाराष्ट्र के शहरी क्षेत्र में रहने वाली 0.3 फीसदी महिलाएं शराब पीती हैं तो वहीं बिहार में 0.5 फीसदी शहरी महिलाएं शराब पीती हैं। आज के समय में बिहार के अंदर शराब हर जगह मौजूद है और हर जगह उपलब्ध भी है और यह बात सब कोई जानता है। हां, कीमत जरूर दो गुना या तीन गुना देना पड़ता है।
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बिहार में युवाओं की एक बड़ी आबादी ऐसी हो गई है जो अवैध शराब के कारोबार में संलिप्त है। इसमें अधिकांश युवा शराब को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने का काम करते हैं और इसके बदले में उन्हें अच्छा खासा रुपया मिलता है। सरकार जो चाहें दावा कर सकती है लेकिन रोज पकड़े जा रहे शराब तस्करों और जो डाटा कह रहा है उसे झुठलाना इतना आसान नहीं होगा। राज्य में कई विधायक भी शराबबंदी के फैसले पर सवाल उठा चुके हैं और विशेषज्ञों का भी मानना है कि शराबबंदी उतना प्रभावी नहीं है जितना सरकार सोचती है। कुल मिलाकर बिहार सरकार को एक बड़े राजस्व का घाटा हो रहा है और इसके बदले में शराबबंदी भी सफल नहीं दिख रही है। खैर, सरकार काम है दावा करना और मुझे उम्मीद है कि सरकार के मंत्री आगे भी अपने फैसले को सफलतम योजनाओं में से एक बताते रहेंगे।