पटना: अयोध्या में राम के नाम पर जमीन की लूट की खबरों के बीच फिर एक गड़बड़ी सामने आई है। अयोध्या में सहायक रिकॉर्ड अधिकारी (एआरओ) न्यायालय ने 22 अगस्त 1996 को लगभग 21 बीघा दलित भूमि को महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट को हस्तांतरित करने के सरकारी आदेश को अवैध घोषित कर दिया है। हालांकि, कोर्ट ने ट्रस्ट के खिलाफ किसी कार्रवाई की सिफारिश नहीं की क्योंकि इसमें कोई जालसाजी शामिल नहीं थी। दलित की जमीन ट्रस्ट ने 1993 में बिना डीएम की अनुमित के ही दान में ले ली थी। वहीं मामला मीडिया में आते ही आनन फानन में अयोध्या मंडल के आयुक्त (कमिश्नर) एमपी अग्रवाल को हटा दिया गया है।
एआरओ अदालत का फैसला 27 दिसंबर, 2021 को आया था। इससे पाँच दिन पहले एक समाचार पत्र ने अपने हवाले से दावा किया था कि स्थानीय विधायकों, नौकरशाहों के करीबी रिश्तेदारों और राजस्व अधिकारियों के परिजन ने अयोध्या में जमीन खरीदी। इन सब को उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले (9 नवंबर, 2019) के तरह जिले में राम मंदिर के निर्माण को मंजूरी मिलने के बाद अचल संपत्ति बाजार में इसकी बढ़ती कीमत का फायदा ले लेंगे। समाचार पत्र के रिपोर्ट के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 22 दिसंबर, 2021 को भूमि सौदों की जांच का आदेश दिया था, इसके बाद जांच रिपोर्ट सौंप दी गई है।
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जानकारी के अनुसार तत्कालीन डीएम अनुज कुमार झा ने दान में ली गई भूमि को जांच के बाद सरकार के नाम दर्ज करने के लिए कहा था। दलित रोंघई MRVT का कर्मचारी था, जिससे ट्रस्ट ने यह भूमि दान में ले ली थी। इस चर्चित मामले में एआरओ भान सिंह ने पिछले माह आदेश बहुत दबाव बढ़ने पर ही किया। 28 दिसंबर को आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रभारी और सांसद संजय सिंह ने मांझा बरेहटा के गरीब दलितों से भेंट कर उन्हें न्याय दिलाने का भरोसा दिलाया था। संजय सिंह ने यह आरोप भी लगाया था कि स्कूल और अस्पताल के नाम पर जमीन लेने के बाद महर्षि ट्रस्ट के लोग इस जमीन को बेचकर अरबों की लूट कर रहे हैं।
रिकॉर्ड बताते हैं कि 1 अक्टूबर, 2020 को तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट अनुज कुमार झा ने इस समिति की रिपोर्ट को मंजूरी दे दी थी, जिसमें एमआरवीटी और कुछ सरकारी अधिकारियों के खिलाफ अपंजीकृत दान विलेख के माध्यम से (अनुसूचित जाति के व्यक्ति) को अवैध रूप से स्थानांतरित करने के लिए कार्रवाई की सिफारिश की गई थी। इसे 18 मार्च 2021 को अयोध्या संभागीय आयुक्त एमपी अग्रवाल द्वारा अनुमोदित किया गया था और अंतत: 6 अगस्त 2021 को एआरओ अदालत में 22 अगस्त 1996 के सुधार आदेश और राज्य सरकार को विचाराधीन भूमि वापस करने” के लिए एक मामला दायर किया गया था।
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